तुलसीदास को यह ज्ञान वेदों, पुराणों और प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्र से प्राप्त हुआ होगा। उस समय के ऋषि-मुनियों ने ध्यान और अभ्यास से ब्रह्मांड के रहस्यों को समझा था और तुलसीदास उसी परंपरा का हिस्सा थे। प्राचीन भारतीय संस्कृति में वैदिक ज्ञान और खगोल विज्ञान का महत्व तुलसीदास जैसे महान संतों के कार्यों में स्पष्ट है। यह ज्ञान आधुनिक विज्ञान के अनुरूप है और प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक ज्ञान की गहराई को दर्शाता है। अपने महाकाव्य रामचरितमानस में, तुलसीदास ने खगोलीय तथ्य प्रदान किए जो उनके आध्यात्मिक दृष्टिकोण और वैदिक ज्ञान का परिणाम हैं। उनका ज्ञान आज भी उल्लेखनीय है, क्योंकि उन्होंने 15वीं शताब्दी में सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी का सटीक वर्णन किया था, जो आधुनिक वैज्ञानिक निष्कर्षों से काफी मेल खाता है।
तुलसीदास जी ने अपनी रचना “रामचरितमानस” के माध्यम से कई वैज्ञानिक तथ्यों का उल्लेख किया है, जो उस समय के लिए अद्वितीय माने जाते थे। उन्होंने सूरज और पृथ्वी की दूरी का उल्लेख अपने भक्ति काव्य के रूप में किया, जो आज के वैज्ञानिक मापदंडों के करीब है।
चौपाई का वैज्ञानिक विश्लेषण
तुलसीदास जी की लिखी एक प्रसिद्ध चौपाई है:
जुग सहस्र जोजन पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानु।।
इसका अर्थ हनुमान जी द्वारा सूरज को हजारों योजन की दूरी पर देखना और उसे मीठा फल समझना है। यहां ‘जुग’, ‘सहस्र’, और ‘योजन’ शब्दों का विश्लेषण करके सूरज और पृथ्वी की दूरी निकाली जा सकती है।
योजन का अर्थ और दूरी की गणना
चौपाई के अनुसार, ‘जुग’ का मतलब एक युग (12,000 दिव्य वर्ष), ‘सहस्र’ का मतलब 1000, और ‘योजन’ का मतलब लगभग 12-15 किलोमीटर होता है। इस तरह,
144,000,000 किलोमीटर की दूरी बताई गई है, जो आधुनिक वैज्ञानिक गणना (149.6 मिलियन किलोमीटर) के काफी नजदीक है।
तुलसीदास को यह जानकारी कैसे मिली?
तुलसीदास जी का यह ज्ञान संभवतः वेदों, पुराणों और प्राचीन भारतीय खगोलशास्त्र पर आधारित हो सकता है। ऋषि-मुनियों ने ध्यान और साधना से ब्रह्मांड के रहस्यों को समझा था, और तुलसीदास जी उसी परंपरा का हिस्सा थे।
वैदिक ज्ञान और खगोलशास्त्र की महत्ता
प्राचीन भारतीय संस्कृति में वेदों और पुराणों में खगोलशास्त्र का गहन ज्ञान था, जो तुलसीदास जी जैसे महान संतों की रचनाओं में परिलक्षित होता है। यह ज्ञान आधुनिक विज्ञान से मेल खाता है और प्राचीन भारतीय विज्ञान की गहराई को दिखाता है।
निष्कर्ष
तुलसीदास जी ने “रामचरितमानस” में जो खगोलीय तथ्य दिए, वे उनकी आध्यात्मिक दृष्टि और वैदिक ज्ञान का परिणाम हैं। उनका यह ज्ञान आज भी आश्चर्यजनक है, क्योंकि उन्होंने 15वीं शताब्दी में सूरज और पृथ्वी की दूरी के बारे में जानकारी दी, जो आधुनिक विज्ञान के बेहद करीब है।