गोवर्धन पूजा, भगवान श्रीकृष्ण के अद्वितीय साहस और करुणा का प्रतीक है। जब वृंदावन के लोग इंद्रदेव की पूजा में लीन थे, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि पर्वत, नदियों और वनों का संरक्षण और पूजा करना ही सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये हमें प्रत्यक्ष रूप से जीवन और पोषण प्रदान करते हैं। यही वजह है कि यह पर्व हर साल हमें प्रकृति से जुड़ने और उसका सम्मान करने का सन्देश देता है।
गोवर्धन पूजा का महत्व
भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर वृंदावनवासियों की रक्षा की थी, जिसे याद करते हुए गोवर्धन पूजा की जाती है। यह पर्व हमें प्रकृति की रक्षा और संतुलन बनाए रखने का संदेश देता है। इसी कारण लोग गोवर्धन पर्वत या उसके प्रतीक के रूप में गोबर से गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा करते हैं।
पूजा की विधि
- गोवर्धन का निर्माण: लोग गोबर से गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाते हैं और इसे फूलों, दीपों और रंगोली से सजाते हैं।
- भगवान की पूजा: गोवर्धन पर्वत के प्रतीक की पूजा की जाती है और अन्नकूट प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसमें कई तरह के पकवान शामिल होते हैं।
- भोग अर्पण: भगवान कृष्ण को अन्नकूट का भोग अर्पित किया जाता है और प्रसाद सभी में बांटा जाता है।
अन्नकूट महोत्सव
इस दिन, भगवान कृष्ण के लिए ‘अन्नकूट’ का आयोजन होता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के पकवान, जैसे पूड़ी, सब्जियां, मिठाइयां, खीर, दाल, और अन्य खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं। यह भोग भगवान को अर्पित करने के बाद सभी भक्तों में बांटा जाता है। अन्नकूट प्रसाद का उद्देश्य हमारे जीवन में अन्न की महत्ता को समझाना है और सबके बीच प्रेम और समानता का प्रसार करना है।
पौराणिक कथा
भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावनवासियों को इंद्रदेव की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए प्रेरित किया था। जब इंद्र ने कुपित होकर भारी वर्षा की, तब कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गांववासियों की रक्षा की। इस दिन को भगवान की करुणा और उनकी भक्ति का प्रतीक माना जाता है।
गोवर्धन पूजा के अनुष्ठान
- परिक्रमा: गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करना इस पर्व का एक प्रमुख अंग है, जो विशेष रूप से मथुरा और वृंदावन में देखने को मिलता है। भक्तजन पैदल यात्रा करके भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।
- जल और दीपदान: कई जगहों पर इस दिन दीपदान और जल का दान भी किया जाता है। यह अनुष्ठान जल और रोशनी का महत्व बताता है और हमें प्रकृति के सभी तत्वों का आदर करना सिखाता है।
पर्यावरण संरक्षण का संदेश
आज के समय में गोवर्धन पूजा का एक और महत्व उभर कर सामने आता है, जो पर्यावरण संरक्षण से जुड़ा है। गोवर्धन पर्वत को देवता के रूप में पूजने का अर्थ है कि हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों को सहेज कर रखना चाहिए। यह पर्व हमें बताता है कि पर्यावरण संरक्षण सिर्फ एक सामाजिक जिम्मेदारी ही नहीं, बल्कि हमारी आस्था और संस्कृति का भी हिस्सा है।
संक्षेप में
गोवर्धन पूजा न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का प्रतीक है। भगवान कृष्ण के इस संदेश को समझते हुए हम अपने दैनिक जीवन में भी इसे अपना सकते हैं और पर्यावरण के प्रति जागरूक रह सकते हैं।